Ladke Bhi Ro Sakte Hain

Ladke Bhi Ro Sakte Hain के इस पोस्ट में आपका स्वागत है दोस्तों। 

हम सब इस बात को जानते है कि किसी लड़के या पुरुष को रोते हुए देखना हम सब को अचंभित कर देता है। क्यूंकि हमारी अपेक्षा एक लड़के या पुरुष से यही होती है कि, वो रो नहीं सकतें। मगर Ladke Bhi Ro Sakte Hain, और इसमें हैरानी की कोई बात नहीं होनी चाहिए।

मगर अफ़सोस कि ऐसा होता नहीं है, और हम सबको बड़ा अजीब सा लगता है जब हम किसी लड़के या पुरुष को रोते हुए देखते हैं। 

हम लोगों ने अपने हिसाब से समाज और घरों के लिए कुछ ख़ास नियम बनाये हुए हैं। ये नियम बाबा आदम के ज़माने से वैसे ही चले आ रहे हैं और हमें चाहे कितनी भी परेशानी या मुसीबत झेलनी पड़े इन नियमों के लिए, हम बाध्य होते हैं इनका पालन करने के लिए। 

और ये बेहद अफसोसजनक है। चीज़ों को एक बंधे -बँधाये रास्ते पर चलने के लिए समाज अपने कायदों और नियमों की दुहाई देता नहीं थकता। 

किसी लड़के को रोना नहीं है, लड़के रोते नहीं है, लड़के हो कर रोते हो शर्म आनी चाहिए, समाज के इन्ही कायदों में से एक है। 

Ladke Bhi Ro Sakte Hai

ladke bhi ro sakte hain
Ladke Bbhi Ro Sakte Hain

हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहाँ किसी पुरुष को रोते हुए देखना अचरज और हैरानी की बात मानी जाती है। हमें बचपन से ये बताया और सिखाया जाता है कि लड़के नहीं रोते। याद कीजिये आपने ये बात कितनी बार सुनी होगी -“क्या लड़कियों की तरह रो रहे हो? या फिर “ये लड़कियों की तरह रोना बंद करो”।

विडंबना तो ये है कि, आज भी ये बातें उतने ही मुहं से सुनने को मिलते हैं जितने ५० साल पहले शायद सुने जाते होंगे।

हम एक ऐसे पुरुष प्रधान समाज में रहते हैं, जहाँ पुरुषों को कमजोड़ पड़ने की इजाज़त नहीं है। हमारे इस समाज में लड़कों या पुरुषों के हालात और स्थितियां चाहे कैसी भी हो, एक अघोषित कानून “मर्द नहीं रो सकते” जैसे बाँध के रख देते हैं पुरुषों की भावनाओं को।

और अगर कोई लड़का/पुरुष अपने आंसुओं को रोकने में नाकाम रहे तो वो न सिर्फ हंसी का पात्र बन जाता है बल्कि उसके घरवाले भी उसे लेक्चर देने में पीछे नहीं रहते।

ये कैसी विडंबना है कि. जो समाज पुरुष और महिला के समानता की बड़ी बड़ी बातें करता है वही समाज एक पुरुष के रो पड़ने पर उसकी हंसी उडाता है। सो, एक लड़की या एक महिला का रोना तो नार्मल होता है मगर एक लड़का या एक पुरुष नहीं रो सकता।

लडको या पुरुषों को अपनी भावनाओं को काबू में रखने की हिदायतें दी जाती है। कुछ ऐसा माहोल बनाया गया है, जैसे भावनाएं सिर्फ लडकियां या महिलायें ही व्यक्त कर सकती है, और पुरुषों को ये अधिकार नहीं है।

और अगर कोई पुरुष रो पड़ता है किसी ऐसे लम्हों में जब कि वो अपने आपको टूटा हुआ महसूस करे, तो वो पुरुष ही नहीं है।
क्या कमाल की बात है, कि, एक पुरुष अपना गुस्सा, अपनी नफ़रत, अपनी ख़ुशी, अपना प्यार तो जाहिर कर सकता है मगर वो रो नहीं सकता. जबकि, गुस्सा, नफ़रत, ख़ुशी, प्य्यार, आंसू ये सब हमारी भावनाएं ही होती हैं।

ऐसा कैसे साबित होता है, कि अगर कोई रो पड़े तो वो कमज़ोर होता है और उसके अन्दर वो ताकत या मजबूती नहीं हो सकती जिससे वो अपने परिवार या अपनी रक्षा कर कर सके।

Ladke Bhi Rote Hain

ladkon ka rona uchit hai
Ladke Bhi Rote Hai

आंसू  कमजोरी नहीं भावनाओं के लक्षण होते हैं ।   

हमारा समाज पुरुषों को केवल विशेष मौकों पर ही रोने की इजाज़त देता है, जैसे किसी अपने की मौत। मतलब अगर आप एक पुरुष हैं, तो अपनी भावनाओं को सिर्फ तभी व्यक्त कर सकते हैं अगर समाज उसको ठीक मानता है, जबकि वही समाज उनही भावनाओं को व्यक्त करने की अनुमति तब देता है, जब आपने अपना कोई प्रिय खोया हो. क्या कहने इस समाज के और इनके कायदे और अघोषित क़ानून के।

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हर मर्द नहीं रोता, और हर वो मर्द जो नहीं रोता, जरूरी नहीं कि वो भीतर से इतना शक्तिशाली (मानसिक तौर पे ) हो कि वो ज़िन्दगी की परेशानियों का सामना कर सके। ठीक उसी तरह, जो मर्द रोते हैं, ज़रूरी नहीं कि, वक़्त आने पर वो किसी भी विसंगति का सामना डट के न कर सके।

आँखों में आंसू सिर्फ साफ़ दिल वालों के आते हैं. और साफ़ दिल किसी gender विशेष का हो, ऐसा कतई नहीं है।

मेरी राय में, जो पुरुष रो पड़ते हों और अपने आंसुओं को छुपा नहीं सकते, वो दिल के न सिर्फ सच्चे हते हैं, बल्कि ऐसे लोग समाज और अपने आसपास के लोगों के लिए एक ऐसे इंसान होते हैं, जो हमेशा तैयार रहते हैं, आपका साथ देंने में, ऐसे विशेष पलों में, जब आपको उनकी ज़रुरत हो। 

क्यूंकि ऐसे लोग दिमाग से नहीं अपने दिल से सोचते हैं, और इनमे भावनाएं होती हैं, पोलिटिकल डिप्लोमेसी नहीं।

अगर आप किसी ऐसे लड़के या पुरुष को जानते है, जो किसी दिल दुख देने वाली बात पर रो पड़ते हों, तो उन्हें विचित्र नज्ज्रों से देखने के बजाय उनकी भावनाओं का सम्मान करें, और उनके साफ़ दिल की कद्र करें।

आज जहाँ हर दूसरा आदमी छल और कपट से भरा हुआ है, कुछ भले लोग आज भी हैं, जो अपनी भावनाओं, और अपने सच्चे दिल की वज़ह से इंसानों की श्रेणी में सबसे आगे हैं।

भावनाओं को व्यक्त करना और अपने आंसुओं को बहने देना किसी कमजोरी की निशानी नहीं बल्कि एक साफ़ और सच्चे दिल का इंसान होने की सबसे बड़ी निशानी है, इस बात को याद रक्खें और किसी भी रोने वाले लड़के या पुरुष का मज़ाक न उड़ायें। 

ज़िन्दगी उतनी भी अजीब नहीं, जितनी हम सबने बना दी है। 

आपका क्या ख्याल है Ladke Bhi Ro Sakte Hain के बारे में, मुझे ज़रूर बताएं। अपना ख्याल रखें और अपने परिवार का भी।

आज के लिए बस इतना ही फिर मुलाकात होगी किसी नए टॉपिक पर।

धन्यवाद !

 

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