fulltshayari. - उम्दा शायरीin
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं ~ मिर्ज़ा ग़ालिब ~
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अंदाज़ अपना देखते हैं आइने में वो और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो ~ निज़ाम रामपुरी ~
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हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना ~ अकबर इलाहाबादी ~
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पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरह ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाल के झटका दिया कि यूँ ~ आरज़ू लखनवी ~
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ये जो सर नीचे किए बैठे हैं जान कितनों की लिए बैठे हैं ~ जलील मानिकपूरी ~
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पहले इस में इक अदा थी नाज़ था अंदाज़ था रूठना अब तो तिरी आदत में शामिल हो गया ~ आग़ा शाएर क़ज़लबाश ~
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आफ़त तो है वो नाज़ भी अंदाज़ भी लेकिन मरता हूँ मैं जिस पर वो अदा और ही कुछ है ~ अमीर मीनाई ~
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निगाहें इस क़दर क़ातिल कि उफ़ उफ़ अदाएँ इस क़दर प्यारी कि तौबा ~ आरज़ू लखनवी ~