इस तरह निगाहें मत फेरो, ऐसा न हो धड़कन रुक जाए सीने में कोई पत्थर तो नहीं एहसास का मारा, दिल ही तो है साहिर लुधियानवी
अपने होने का कुछ एहसास न होने से हुआ ख़ुद से मिलना मिरा इक शख़्स के खोने से हुआ मुसव्विर सब्ज़वारी
रोज़ मिलने पे भी लगता था कि जुग बीत गए इश्क़ में वक़्त का एहसास नहीं रहता है अहमद मुश्ताक़
अब तो ये भी नहीं रहा एहसास दर्द होता है या नहीं होता जिगर मुरादाबादी
तेरे हाथों की हरारत तिरे साँसों की महक तैरती रहती है एहसास की पहनाई में साहिर लुधियानवी