गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफ़ाक़ से पूछेंगे अपना हाल तिरी बेबसी से हम साहिर लुधियानवी

वो जो आँसुओं की ज़बान थी मुझे पी गई वो जो बेबसी के कलाम थे मुझे खा गए लियाक़त अली आसिम

उन के सितम भी कह नहीं सकते किसी से हम घुट घुट के मर रहे हैं अजब बेबसी से हम आले रज़ा रज़ा

कह तो सकता हूँ मगर मजबूर कर सकता नहीं इख़्तियार अपनी जगह है बेबसी अपनी जगह अनवर शऊर

किस बेबसी के साथ बसर कर रहा है उम्र इंसान मुश्त-ए-ख़ाक का एहसास लिए हुए नुशूर वाहिदी

हमारी बेबसी शहरों की दीवारों पे चिपकी है हमें ढूँडेगी कल दुनिया पुराने इश्तिहारों में अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

आँसुओं से लिख रहे हैं बेबसी की दास्ताँ लग रहा है दर्द की तस्वीर बन जाएँगे हम अज़्म शाकरी

मैं जल रहा हूँ और कोई देखता नहीं आँखें हैं सब के पास मगर बेबसी है क्या इब्राहीम अश्क