उमीद उन से वफ़ा की तो ख़ैर क्या कीजे जफ़ा भी करते नहीं वो कभी जफ़ा की तरह 

बेवफ़ाई पर कुछ शेर

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नहीं शिकवा मुझे कुछ बेवफ़ाई का तिरी हरगिज़ गिला तब हो अगर तू ने किसी से भी निभाई हो 

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बेवफ़ाई पर कुछ शेर

हम से कोई तअल्लुक़-ए-ख़ातिर तो है उसे वो यार बा-वफ़ा न सही बेवफ़ा तो है 

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बेवफ़ाई पर कुछ शेर

क़ाएम है अब भी मेरी वफ़ाओं का सिलसिला इक सिलसिला है उन की जफ़ाओं का सिलसिला 

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बेवफ़ाई पर कुछ शेर

इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की आज पहली बार उस से मैं ने बेवफ़ाई की 

बेवफ़ाई पर कुछ शेर

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दिल भी तोड़ा तो सलीक़े से न तोड़ा तुम ने बेवफ़ाई के भी आदाब हुआ करते हैं

बेवफ़ाई पर कुछ शेर

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ये क्या कि तुम ने जफ़ा से भी हाथ खींच लिया मिरी वफ़ाओं का कुछ तो सिला दिया होता 

बेवफ़ाई पर कुछ शेर

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अधूरी वफ़ाओं से, उम्मीद रखना हमारे भी दिल की अजब सादगी है...

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