दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता अहमद फ़राज़

ये और बात कि चाहत के ज़ख़्म गहरे हैं तुझे भुलाने की कोशिश तो वर्ना की है बहुत महमूद शाम

ज़ख़्म कितने तिरी चाहत से मिले हैं मुझ को सोचता हूँ कि कहूँ तुझ से मगर जाने दे नज़ीर बाक़री

तेरी सूरत तेरी चाहत यादें सब छोटे से इस दिल में क्या क्या रक्खूँगा अमित शर्मा मीत

चाहत के बदले में हम बेच दें अपनी मर्ज़ी तक कोई मिले तो दिल का गाहक कोई हमें अपनाए तो अंदलीब शादानी

तेरी चाहत की है इतनी शिद्दत पा लिया तुझ को तो मर जाऊँगा प्रेम भण्डारी

अब किसी राह पे जलते नहीं चाहत के चराग़ तू मिरी आख़िरी मंज़िल है मिरा साथ न छोड़ मज़हर इमाम

अगर ख़ुद को भूले तो कुछ भी न भूले कि चाहत में उन की ख़ुदा को भुला दें सुदर्शन फ़ाकिर