कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी परवीन शाकिर
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा अहमद फ़राज़
तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता दाग़ देहलवी
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
बस इक झिजक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में कि तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में कैफ़ी आज़मी
दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता अहमद फ़राज़
मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है दाग़ देहलवी
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ अहमद फ़राज़