दिल है क़दमों पर किसी के सर झुका हो या न हो बंदगी तो अपनी फ़ितरत है ख़ुदा हो या न हो जिगर मुरादाबादी
कोई रोए तो मैं बे-वजह ख़ुद भी रोने लगता हूँ अब 'अख़्तर' चाहे तुम कुछ भी कहो ये मेरी फ़ितरत है अख़्तर अंसारी
मैं तो ज़हरीले साँपों को अब भी दूध पिलाता हूँ ये मेरी फ़ितरत है 'अख़्तर' या मेरी नादानी है अख़्तर अब्दुर्रशीद
ख़्वाब देखा था कहाँ चमकी है ताबीर कहाँ हश्र का दिन मिरी फ़ितरत का उजाला निकला क़ौसर जायसी
दिल को होना है फ़ना रहना है क़ाएम अक़्ल को हस्ती-ए-आदम कहाँ जाए ये फ़ितरत छोड़ कर प्रियंवदा सिंह