आँखों के पोछने से लगा आग का पता यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ
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तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं सज़ाएँ भेज दो हम ने ख़ताएँ भेजी हैं
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ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी थी उन की बात सुनी भी हम ने अपनी बात सुनाई भी
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मैं चुप कराता हूँ हर शब उमडती बारिश को मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है
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यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं सोंधी सोंधी लगती है तब माज़ी की रुस्वाई भी
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रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले क़रार दे के तिरे दर से बे-क़रार चले
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ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी थी उन की बात सुनी भी हम ने अपनी बात सुनाई भी
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तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं सज़ाएँ भेज दो हम ने ख़ताएँ भेजी हैं