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ख़ुद अपने क़त्ल का इल्ज़ाम ढो रहा हूँ अभी मैं अपनी लाश पे सर रख के रो रहा हूँ अभी
Ilzam Shayari
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एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं
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दीवानगी-ए-इश्क़ पे इल्ज़ाम कुछ भी हो दिल दे दिया है आप को अंजाम कुछ भी हो
Ilzam Shayari
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बेवफ़ाई का मुझे इल्ज़ाम देता था वो शख़्स मैं ने भी इतना किया बस उस को सच्चा कर दिया
Ilzam Shayari
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छोड़ना है तो न इल्ज़ाम लगा कर छोड़ो कहीं मिल जाओ तो फिर लुत्फ़-ए-मुलाक़ात रहे
Ilzam Shayari
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कोई इल्ज़ाम कोई तंज़ कोई रुस्वाई दिन बहुत हो गए यारों ने इनायत नहीं की
Ilzam Shayari
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अपनी लग़्ज़िश को तो इल्ज़ाम न देगा कोई लोग थक-हार के मुजरिम हमें ठहराएँगे
Ilzam Shayari
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मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है
Ilzam Shayari