मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे
जॉन एलिया को शायरी का एक शहर कह सकते हैं
मेरी बाँहों में बहकने की सज़ा भी सुन ले अब बहुत देर में आज़ाद करूँगा तुझ को
तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो मैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो
शाम हुई है यार आए हैं यारों के हमराह चलें आज वहाँ क़व्वाली होगी 'जौन' चलो दरगाह चलें
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
कैसे कहें कि तुझ को भी हम से है वास्ता कोई तू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया
अब जो रिश्तों में बँधा हूँ तो खुला है मुझ पर कब परिंद उड़ नहीं पाते हैं परों के होते
सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई क्यूँ चीख़ चीख़ कर न गला छील ले कोई