ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए
न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है दिया जल रहा है हवा चल रही है
~ ख़ुमार बाराबंकवी की शायरी ~
वही फिर मुझे याद आने लगे हैं जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं
~ ख़ुमार बाराबंकवी ~
भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए
~ ख़ुमार बाराबंकवी ~
मोहब्बत को समझना है तो नासेह ख़ुद मोहब्बत कर किनारे से कभी अंदाज़ा-ए-तूफ़ाँ नहीं होता
~ ख़ुमार बाराबंकवी ~
ख़ुदा बचाए तिरी मस्त मस्त आँखों से फ़रिश्ता हो तो बहक जाए आदमी क्या है
~ ख़ुमार बाराबंकवी ~
तुझ को बर्बाद तो होना था बहर-हाल 'ख़ुमार' नाज़ कर नाज़ कि उस ने तुझे बर्बाद किया
~ ख़ुमार बाराबंकवी ~
ओ जाने वाले आ कि तिरे इंतिज़ार में रस्ते को घर बनाए ज़माने गुज़र गए
~ ख़ुमार बाराबंकवी ~