राहत इन्दोरी साहब के शेर और शायरी में एक तंज़ रहता आया है और जो पूरी तरह से हालात और एहसासों के साथ खपते हुए नज़र आते हैं.
मेरे हुजरे में नहीं, और कहीं पर रख दो आसमां लाए हो, ले आओ, ज़मीन पर रख दो अरे यार कहां ढूंढने जाओगे हमारे कातिल आप तो कत्ल का इल्ज़ाम हमी पर रख दो
जुबाँ तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे में कितनी बार लुटा हूँ , मुझे हिसाब तो दे
हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते है मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं
पहले मैंने अपने दरवाजे पर खुद आवाज दी फिर थोड़ी देर में खुद निकल कर आ गया
सूरज,सितारे,चाँद,मेरे साथ में रहे जब तक तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में रहे
शाखों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम आँधी से कोई कह दो, कि औकात में रहे
घर से यह सोचकर निकला हूं कि मर जाना है अब कोई राह दिखा दे कि किधर जाना है