साहिर लुधियानवी की तल्खियत में रूमानियत और रूमानियत में तल्खी झलकती थी. पेश हैं, कुछ अमर शेर उनके
लो आज हम ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उमीद लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम
अरे ओ आसमाँ वाले बता इस में बुरा क्या है ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएँ
जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया जो खो गया मैं उस को भुलाता चला गया
हम जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा पाएँगे तन्हा जो तुझ से हुई हो वो ख़ता साथ लिए जा
लो आज हम ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उम्मीद लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम
फिर न कीजे मिरी गुस्ताख़-निगाही का गिला देखिए आप ने फिर प्यार से देखा मुझ को
जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते हैं लोग एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग