तो साहिबान, Vijay Devarakonda और Ananya Pandey की Liger दर्शकों के लिए बाज़ार में आ चुकी है. अब ये फिल्म जिसे    

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उसकी ही भाषा क्षेत्र के लोग "टार्चर" कह रहे हैं, वो हिंदी बहुल क्षेत्रों में क्या करेगी, अंदाजा लाया जा सकता है. लेकिन 

इस फिल्म के हीरो Vijay Devarakonda, का अपने आप को निगल जाने का अनूठा फन किसी एनाकोंडा से कम नहीं है.

इसका ये कहना कि, "कोई मेरी फिल्म  देखे या न देखे. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है" ये बताता है कि, इसका घमंड 

इसके सर से चढ़ता हुआ इसकी ज़ुबान से होते हुए इसको निगल जाने को तैयार बैठा है. जो दर्शक, इनके लिए सबकुछ होते हैं. 

उन्ही दर्शकों के लिए ये खयालात रखता है ये फ़िल्मी हीरो. जिस पब्लिक ने इसके पिक्चर के टिकट खरीद के इसे करोड़पति बनाया 

ये कल का लौंडा, ज़हरीला एनाकोंडा. उन्हें ही डंसने और खुद के करियर को निगल जाने को तैयार बैठा है. तेरी फिल्म Liger

क्या कर पाती है, वो मुद्दा नहीं रहेगा बेटे. मुद्दा ये रहेगा कि, "तू क्या कर पाता है और कब तक?" क्यूंकि घमंड तो रावण का भी न रहा था !